उत्तराखण्ड
नैनीताल: रिश्वत मामले में हाईकोर्ट ने पूछा- गिरफ्तारी के बाद क्यों दर्ज की FIR

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को हुई सुनवाई में जिला कोषागार नैनीताल के मुख्य कोषाधिकारी दिनेश कुमार राणा और लेखाकार बसंत कुमार जोशी के विरुद्ध रिश्वत मामले में विजिलेंस से पूछा कि बगैर एफआईआर आरोपी को गिरफ्तार क्यों किया गया। साथ ही मालूम किया कि प्रिवेंशन ऑफ करप्शन की धारा आठ के प्रावधान के तहत रिश्वत देने वाले व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की गई।
न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल के समक्ष सुबह मामले की सुनवाई हुई। कोर्ट के सवालों का कोई संतोषजनक जवाब न मिलने पर कोर्ट ने दोपहर बाद पुनः सुनवाई की और सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारी को तलब कर ऐसे मामलों की प्रक्रिया की जानकारी ली। सीबीआई के अधिकारी ने बताया कि शिकायत मिलने पर उसकी जांच की जाती है और शिकायत सही होने पर एफआईआर दर्ज करने के बाद गिरफ्तारी की जाती है।
इस प्रकरण में विजिलेंस की ओर से गिरफ्तारी के बाद एफआईआर दर्ज होने पर कोर्ट ने आपत्ति जताई। इस मुद्दे पर कोई संतोषजनक जवाब न मिलने पर कोर्ट ने कहा कि इसका जवाब कल तक बताएं और सुनवाई शुक्रवार को जारी रखने के निर्देश दिए। इससे पूर्व कोर्ट ने जांच अधिकारी को समस्त अभिलेखों सहित बृहस्पतिवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में उपस्थित होने के लिए बुधवार को आदेश दिए थे।
मामले के अनुसार न्यायालय कर्मी ने स्वयं और पांच अन्य सहकर्मियों की एसीपी पर हस्ताक्षर के लिए मुख्य कोषाधिकारी की ओर से एक लाख बीस हजार रुपये की रिश्वत की मांग का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी। इस पर विजिलेंस की टीम ने योजनाबद्ध ढंग से 9 मई को मुख्य कोषाधिकारी और लेखाकार को गिरफ्तार कर कोर्ट के आदेश पर न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया था। निचली अदालत से राणा की जमानत याचिका खारिज हो गई थी। उसके बाद राणा ने हाईकोर्ट में अपील कर कहा था कि उसने रिश्वत नहीं ली थी, उसे झूठा फंसाया गया, जबकि उन्होंने शिकायतकर्ता की एसीपी फाइल पहले ही वापस कर दी थी।
सीबीआई और विजिलेंस की जांच के विरोधाभासी तरीके आपत्तिजनक
मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस राकेश थपलियाल ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि इस तरह के 99 फीसदी मामलों में पुलिस की तहकीकात गलत होती है। नियमों का सही पालन नहीं होता और इसलिए दोषियों को सजा नहीं हो पाती। उन्होंने कहा कि पुलिस अपनी मनमानी से जांच करती है न कि नियम के अनुरूप। उन्होंने कहा कि एक ही तरह के मामलों में सीबीआई और विजिलेंस की जांच के विरोधाभासी तरीके हैं, जो घोर आपत्तिजनक हैं।
