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उत्तराखण्ड

उत्तराखंड: मानसून में निर्वाचन आयोग के लिए चुनौतियों का चुनाव…खूब बरसेंगे मेघ।

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मानसून के दौरान जुलाई माह में होने जा रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में मतों का तो पता नहीं, लेकिन मेघों का बरसना तय है। इस लिहाज से राज्य निर्वाचन आयोग के लिए यह चुनौतियों का चुनाव भी है। हालांकि एहतियात के तौर पर मानसून के लिहाज से संवेदनशील माने जाने वाले क्षेत्रों में आयोग ने पहले चुनाव कराने का निर्णय लिया है, लेकिन यह इतना आसान नहीं होगा।

उच्च न्यायालय की रोक हटने के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव की संशोधित अधिसूचना जारी कर दी है। नामांकन और मतदान से लेकर मतगणना तक की पूरी प्रक्रिया एक महीने में निपटा ली जाएगी। मानसून का यह महीना भारी बारिश और उससे उत्पन्न होने वाली प्राकृतिक घटनाओं को लेकर भी आशंकित करता है। इन्हीं आशंकाओं का नतीजा है कि मानसून के दौरान चुनाव कराए जाने के विरोध में भी स्वर उठने लगे हैं।

भाजपा नेता और उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी सम्मान परिषद के पूर्व अध्यक्ष रविंद्र जुगरान कहते हैं, पक्ष, विपक्ष, निर्वाचन आयोग व सभी पक्षकारों को मानसून सीजन समाप्त होने के बाद ही चुनाव कराने पर सहमति बनानी चाहिए। जुलाई माह में चुनाव कराने के गंभीर खतरे हैं।

प्रदेश में बरसात के समय भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं बढ़ी हैं। मानसून के दौरान नदी, नाले, खाले उफान पर होते हैं। ऐसे में मतदाताओं से लेकर चुनाव कराने वाली मशीनरी तक के लिए ये जोखिम की स्थिति है।

सामाजिक कार्यकर्ता जगमोहन मेंदीरत्ता कहते हैं, मानसून में चुनाव कराना लोगों की जान से खेलना है। बरसात में क्या लोग अपने मत का प्रयोग कर सकेंगे, यह लोकतंत्र के साथ मजाक है। इन आशंकाओं के बीच राज्य निर्वाचन आयोग के लिए निर्भय, निष्पक्ष, शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव कराना बेहद चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है। चूंकि चुनाव ग्रामीण क्षेत्रों में होने हैं और बारिश होने की स्थिति में वहां मतदान के प्रभावित होने की पूरी संभावना रहेगी।

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